अबतक इंडिया न्यूज 23 जून । ईरान और इजराइल वॉर के बीच में अमेरिका के कूदने से युद्ध और भयानक हो गया है. दोनों देशों से एक दूसरे पर ताबड़तोड़ गोलाबारी करने के सिलसिले को जारी रखा है. इसी बीच कल ईरानी संसद में कच्चे तेल के व्यापार से जुड़े प्रमुख समुद्री मार्ग स्ट्रेट ऑफ होर्मुज को बंद करने के फैसला किया. हालांकि, इस पर अंतिम निर्णय आना बाकी है, जिसके बाद से आज क्रूड ऑयल की कीमतों में तेजी आई है. आइए आपको बताते हैं कि होर्मुज का भारत पर क्या असर पड़ेगा.
होर्मुज पर लिए फैसले का असर आज क्रूड ऑयल की कीमतों पर दिखाई दे रहा है. देश में अभी कच्चे तेल की करीब 2 प्रतिशत की तेजी के साथ 6,525.00 रुपये प्रति बैरल पर चल रही हैं. पिछले दिन से उनमें करीब 120 रुपये प्रति बैरल की तेजी देखने को मिली है. संसद में लिए फैसले के कारण ही काले सोने में आग लग गई है. अगर खामेनेई इस फैसले को मंजूर कर देते हैं, तो क्रूड ऑयल का क्या होगा. भारत पर उसका असर कितना होगा. आइए समझते हैं.
होर्मुज पर दुनिया की निर्भरता
स्ट्रेट ऑफ होर्मुज के जरिए अमेरिका से लेकर अफ्रीका तक के देश इस खाड़ी पर निर्भर हैं. ICRA की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2024 में होर्मुज से सबसे ज्यादा चीन और जापान ने इंपोर्ट किया है.
भारत को होगा नुकसान
रिसर्च फर्म ICRA के मुताबिक, भारत इराक, सऊदी अरब, कुवैत और UAE जैसे देशों से कच्चे तेल का 45-50% आयात करता है. खास बात ये है कि 2025 में भारत के कुल कच्चे तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी 36% थी. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि अगर कच्चे तेल की कीमत 10 डॉलर प्रति बैरल बढ़ती है, तो भारत का तेल आयात बिल सालाना 13-14 बिलियन डॉलर बढ़ सकता है. इससे चालू खाता घाटा (CAD) भी देश की जीडीपी का 0.3% बढ़ जाएगा.
अगर कच्चे तेल की कीमत 120 डॉलर हो जाती है तो भारत में इन्हीं टैक्स और तेल कंपनियों के मुनाफे की दरों पर पेट्रोल की कीमत 122 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत 115 रुपये प्रति लीटर तक जा सकती है. इसी तरह अगर कच्चा तेल 150 डॉलर प्रति बैरल के हिसाब से मिलता है तो फुटकर खरीददारों को एक लीटर पेट्रोल के लिए 138 रुपये और उतने ही डीजल के लिए 132 रुपये चुकाने पड़ सकते हैं.
जीडीपी ग्रोथ पर पड़ेगा असर?
ICRA का कहना है कि अगर 2026 में कच्चे तेल की औसत कीमत 80-90 डॉलर प्रति बैरल हो जाती है, तो CAD मौजूदा 1.2-1.3% से बढ़कर जीडीपी का 1.5-1.6% हो सकता है. इससे रुपये पर भी दबाव पड़ेगा और USD/INR की वैल्यू प्रभावित होगी. साथ ही, कच्चे तेल की कीमत में हर 10% की बढ़ोतरी से थोक इंफ्लेशन (WPI) 0.8-1% और कंज्यूमर इंफ्लेशन (CPI) 0.2-0.3% बढ़ सकता है.
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें भारत की जीडीपी ग्रोथ को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं. ICRA के अनुसार, अगर कीमतें लगातार बढ़ती रहीं, तो भारतीय इंडस्ट्रीज की मुनाफाखोरी पर असर पड़ेगा और 2026 के लिए जीडीपी ग्रोथ अनुमान 6.2% तक कम हो सकता है.