अबतक इंडिया न्यूज बिहार 8 जुलाई । बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी हलचल अपने चरम पर पहुंचता दिख रहा है. सभी प्रमुख दल चुनाव को लेकर सक्रिय हो गए हैं. असदुद्दीन ओवैसी भी चुनाव को लेकर लगातार एक्टिव हैं. उन्होंने बिहार में अपने सियासी दांव से राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की अगुवाई वाले महागठबंधन को उलझन में डाल दिया. आरजेडी और कांग्रेस के सामने अब इस उलझन को जल्द से जल्द सुलझाने का दबाव भी है.
ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) की ओर से महागठबंधन का हिस्सा बनने को लेकर लिखे खत ने बिहार की सियासत को नया मोड़ दे दिया है. अब ओवैसी को बीजेपी की बी टीम बताने के बाद उनके इस दांव से कांग्रेस को कैसे निपटना है, अब इसका फैसला कल बुधवार (9 जुलाई) को राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की मुलाकात में होने के आसार हैं.
पिछले चुनाव में AIMIM ने पहुंचाया था नुकसान
हैदराबाद से सांसद ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में चुनाव लड़ा था और शानदार प्रदर्शन करते हुए 5 सीटों पर जीत भी हासिल की, यही नहीं कई सीटों पर खासकर सीमांचल इलाके में महागठबंधन को नुकसान भी पहुंचाया. हालांकि, इसके बाद महागठबंधन की ओर से ओवैसी को बीजेपी की बी टीम बताया जाने लगा और आगे चलकर आरजेडी ने 5 में से 4 विधायकों को तोड़कर अपने साथ मिला लिया.
अब ये ओवैसी का सियासी दांव है या सेकुलर वोटों के लिए समर्पण, ये तो सियासी शोध का विषय है. लेकिन ओवैसी की बिहार इकाई ने सेकुलर मतों का बंटवारा रोकने के लिए उन्हें महागठबंधन में शामिल करने के लिए खत लिखा. जिसका जवाब अब तक सीधे तौर पर नहीं आया है.
बीजेपी की हिंदू-मुस्लिम की सियासत को होगा फायदा!
दरअसल, महागठबंधन में खासकर कांग्रेस को लगता है कि, ओवैसी को साथ लेना बीजेपी की हिंदू-मुस्लिम की सियासत को फायदा पहुंचा सकता है. इसलिए वो इसके पक्ष में नहीं है. वैसे कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि, ये ओवैसी की वो सियासी चाल है, जो भविष्य में बीजेपी की मदद के लिए चली गई है यानी विपक्ष ओवैसी पर बीजेपी की बी टीम होने की तोहमत लगाए और उनका हाल यूपी जैसा हो.
इसलिए उन्होंने ये दांव चलकर भविष्य में ये बताने की कोशिश कर ली है कि, वो तो बीजेपी के खिलाफ सेकुलर वोटों का बंटवारा रोकने के लिए साथ आने को तैयार थे. लेकिन उनको नहीं लिया गया, तो वो अलग लड़ रहे हैं वरना वो बीजेपी के सख्त खिलाफ हैं, उसकी बी टीम नहीं. इससे उनका वोट बैंक उनके साथ बना रहे.
ओवैसी के पत्र का अब तक नहीं मिला कोई जवाब
ओवैसी की पार्टी के इस सियासी दांव को समझते हुए अब तक महागठबंधन या कांग्रेस की तरफ से उनको हां या ना में जवाब नहीं दिया गया है. कोशिश ये है कि, ऐसे तर्क गढ़े जाएं जिससे ना भी न कहना पड़े और ओवैसी अपनी अलग राह चुन लें. ऐसे में 9 जुलाई को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी जब पटना जाएंगे तो उनकी तेजस्वी यादव से मुलाकात आधिकारिक तौर पर तस्वीर साफ करे न करे, लेकिन फैसला जरूर हो जाएगा.
इससे पहले पिछले हफ्ते एआईएमआईएम ने बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन में शामिल होने की इच्छा जताई थी. महागठबंधन में इस समय आरजेडी, कांग्रेस और वाम दल शामिल हैं. एआईएमआईएम की बिहार यूनिट के अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने आरजेडी के प्रमुख लालू प्रसाद को पत्र लिखकर औपचारिक रूप से महागठबंधन में शामिल होने का अनुरोध किया था.
अख्तरुल ईमान पार्टी के एकमात्र विधायक हैं. पिछले हफ्ते 2 जुलाई को लिखा गया यह पत्र पार्टी नेताओं ने सोशल मीडिया पर साझा किया है. ईमान ने कहा कि बिहार में इंडिया गठबंधन में एआईएमआईएम को शामिल करने से धर्मनिरपेक्ष मतों के विभाजन को रोका जा सकेगा. उन्होंने दावा किया कि ऐसा होने पर यह सुनिश्चित होगा कि राज्य में अगली सरकार महागठबंधन की बनेगी.
पिछली बार भी महागठबंधन में आना चाह रही थी पार्टी
ईमान ने यह भी बताया कि उनकी पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनाव में भी गठबंधन में शामिल होने की कोशिश की थी और इस बार उन्होंने (ओवैसी) कांग्रेस और वाम दलों के नेताओं से फोन पर बात कर अपनी इच्छा जाहिर कर दी है. इससे पहले 2020 के चुनावों में एआईएमआईएम ने उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की अध्यक्षता वाली तत्कालीन राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था.
एआईएमआईएम ने पिछले चुनाव में कुल 5 सीट पर जीत दर्ज की थी और ये सभी सीट सीमांचल क्षेत्र में आती हैं, जहां अच्छी खासी मुस्लिम आबादी है. उसके इस प्रदर्शन की वजह से आरजेडी की अगुवाई वाला महागठबंधन बहुमत के आंकड़े से 12 सीट से पीछे रह गया था. हालांकि ईमान को छोड़कर एआईएमआईएम के टिकट पर चुने गए बाकी चारों सभी विधायक 2022 में आरजेडी में शामिल हो गए थे.