दरअसल, चिराग पासवान की ‘बहुजन भीम संकल्प समागम’ रैली का आयोजन नालंदा में कर रहे हैं जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गढ़ माना जाता है. राजनीति के जानकारों की नजर में एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. बिहार में दलित आबादी 19.65% है, जिसमें पासवान समुदाय (5.31%) उनकी मुख्य ताकत है. लेकिन, चिराग पासवान अब केवल पासवान वोटों तक सीमित नहीं रहना चाहते. इस रैली के माध्यमस से वे सभी दलित उपजातियों, खासकर बहुजन समाज (SC, ST, OBC) को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं. LJP(RV) के जमुई सांसद और चिराग के जीजा अरुण भारती ने इसे ‘ऐतिहासिक घोषणा’ का मंच बताया है जिसमें चिराग को ‘बहुजन समाज का नेतृत्वकर्ता’ स्थापित करने की योजना है. यह रैली ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ के नारे को और मजबूत करने का प्रयास है जिसमें चिराग युवा और बहुजन वोटरों को एक नया विकल्प देना चाहते हैं.
NDA में बड़ा दबदबा और सीटों की मोलभाव
चिराग पासवान की यह रैली NDA के भीतर उनकी स्थिति को मजबूत करने का हिस्सा है. 2024 के लोकसभा चुनाव में LJP(RV) ने पांच सीटों पर जीत हासिल की जिससे चिराग की सियासी ताकत बढ़ी है. अब वे विधानसभा चुनाव में अधिक से अधिक सीटें हासिल करने के लिए दबाव बना रहे हैं. चिराग पासवान की महत्वाकांक्षा को सांसद अरुण भारती के के शब्दों से भी समझ सकते हैं जिसमें उन्होंने कहा, अगर एक सांसद वाली HAM 40 सीटें मांग सकती है तो पांच सांसदों वाली LJP(RV) को कितनी सीटें मिलनी चाहिए? यह बयान NDA के सहयोगियों, खासकर JDU पर दबाव बनाने की रणनीति को स्पष्ट करता है. बता दें कि चिराग ने पहले ही घोषणा कर दी है कि वे सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने को तैयार हैं. हालांकि, इसके साथ ही वह NDA के साथ गठबंधन में रहने की बात भी कहते हैं. जाहिर है उनकी रणनीति में दलित और पिछड़े वोटों को एकजुट कर NDA के वोट शेयर को बढ़ाना और साथ ही अपनी पार्टी को बिहार की सियासत में एक मजबूत विकल्प के रूप में पेश करने की है.
दूसरी ओर जानकारी यह है कि चिराग पासवान की इस रैली ने NDA गठबंधन में सरगर्मी बढ़ा दी है. ऐसा इलिये कि नालंदा में रैली का आयोजन नीतीश कुमार के लिए एक सीधा चुनौती कही जा रही है जिनके साथ चिराग पासवान के रिश्ते पूर्व में तनावपूर्ण हैं रहे हैं. एनडीए के कुछ नेताओं ने चिराग के विधानसभा चुनाव लड़ने के फैसले को ‘दबाव की रणनीति’ करार दिया है और कुछ ने इसे उनकी मुख्यमंत्री पद की महत्वाकांक्षा से जोड़ा है. वहीं, RJD नेता तेजस्वी यादव ने भी चिराग से उनकी मंशा स्पष्ट करने को कहा है जिससे सियासी हलकों में चर्चा तेज हो गई है कि चिराग पासवान की आखिर क्या चाहत है. दूसरी ओर BJP के कुछ नेता चिराग को पासवान वोटों को एकजुट करने के लिए उपयोगी मानते हैं, लेकिन नीतीश की अगुवाई में ही चुनाव लड़ने की बात दोहराते हैं.
राजनीति के जानकार बताते हैं कि चिराग पासवान की यह रैली बिहार की सियासत में एक नए समीकरण को जन्म दे सकती है. पहला तो यह कि पूरी कवायद दलित और पिछड़े वर्गों को एकजुट कर LJP(RV) को एक बड़े सियासी खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने का प्रयास है. दूसरा यह NDA के भीतर सीट बंटवारे में चिराग पासवान की सौदेबाजी की ताकत को बढ़ा देता है. हालांकि, HAM के नेता जीतन राम मांझी के साथ तनाव और दलित वोटों के बंटवारे की आशंका LJP(RV) के लिए चुनौती है. वहीं तीसरा यह कि चिराग की रणनीति नीतीश कुमार की सियासी विरासत को चुनौती दे रही है जो उनके राजनीतिक करियर के अंतिम चरण में माने जा रहे हैं. अगर चिराग पासवान बहुजन वोटों को एकजुट करने में सफल रहे तो वे भविष्य में बिहार की सियासत में एक निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.