अबतक इंडिया न्यूज 11 अगस्त । 12 अगस्त दिन मंगलवार को कजरी तीज का पर्व मनाया जाएगा और यह पर्व प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. कजरी तीज को बड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है. इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने के साथ नीम के पेड़ की पूजा का भी विधान है. कजरी तीज का त्योहार मुख्य रूप से उत्तर भारत, खासकर राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. हरियाली तीज और हरतालिका तीज के बाद कजरी तीज तीसरे बड़े व्रत के रूप में माना जाता है. आइए जानते हैं कजरी तीज क्यों मनाई जाती है और इस पर्व की शुरुआत कैसे हुई.
कजरी तीज का महत्व
कजरी तीज के दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन के लिए व्रत रखती हैं, जबकि अविवाहित कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति की कामना करती हैं. इसके साथ ही, यह त्योहार वर्षा ऋतु के स्वागत और धरती की हरियाली का उत्सव भी है. कजरी तीज का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करना है. साथ ही इस दिन नीमड़ी पूजन का भी विशेष महत्व है, जिसमें सुहागिन महिलाएं नीम की जाली को देवी के रूप में पूजा अर्चना करती हैं. यह पर्व पारिवारिक एकता और समाज में सकारात्मकता का संचार करता है.
कजरी तीज के दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन के लिए व्रत रखती हैं, जबकि अविवाहित कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति की कामना करती हैं. इसके साथ ही, यह त्योहार वर्षा ऋतु के स्वागत और धरती की हरियाली का उत्सव भी है. कजरी तीज का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करना है. साथ ही इस दिन नीमड़ी पूजन का भी विशेष महत्व है, जिसमें सुहागिन महिलाएं नीम की जाली को देवी के रूप में पूजा अर्चना करती हैं. यह पर्व पारिवारिक एकता और समाज में सकारात्मकता का संचार करता है.
क्यों मनाया जाता है कजरी तीज?
कजरी तीज का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन का प्रतिनिधित्व करता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता पार्वती ने कठिन तपस्या के बाद शिव जी को पति रूप में प्राप्त किया, इसलिए यह व्रत स्त्रियों के लिए अखंड सौभाग्य का प्रतीक है. कजरी तीज सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं रखती, बल्कि ग्रामीण समाज में यह महिलाओं के सामूहिक उत्सव, लोकगीत और नृत्य के जरिए सामाजिक मेलजोल का अवसर भी बनती है. यह पर्व हरियाली तीज के लगभग 15 दिनों के बाद आता है.
कजरी तीज का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन का प्रतिनिधित्व करता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता पार्वती ने कठिन तपस्या के बाद शिव जी को पति रूप में प्राप्त किया, इसलिए यह व्रत स्त्रियों के लिए अखंड सौभाग्य का प्रतीक है. कजरी तीज सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं रखती, बल्कि ग्रामीण समाज में यह महिलाओं के सामूहिक उत्सव, लोकगीत और नृत्य के जरिए सामाजिक मेलजोल का अवसर भी बनती है. यह पर्व हरियाली तीज के लगभग 15 दिनों के बाद आता है.
धरती की हरियाली का उत्सव कजरी तीज
यह तीज सावन के बाद भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को आती है. वर्षा ऋतु के बीच का यह समय फसल की हरियाली और नई उमंग का द्योतक है. इसके साथ ही, यह त्योहार वर्षा ऋतु के स्वागत और धरती की हरियाली का उत्सव भी है. यह समय खेतों में धान की फसल के बढ़ने का होता है. महिलाएं खेतों और प्रकृति को धन्यवाद देने के साथ-साथ वर्षा की निरंतरता और परिवार की समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं.
यह तीज सावन के बाद भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को आती है. वर्षा ऋतु के बीच का यह समय फसल की हरियाली और नई उमंग का द्योतक है. इसके साथ ही, यह त्योहार वर्षा ऋतु के स्वागत और धरती की हरियाली का उत्सव भी है. यह समय खेतों में धान की फसल के बढ़ने का होता है. महिलाएं खेतों और प्रकृति को धन्यवाद देने के साथ-साथ वर्षा की निरंतरता और परिवार की समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं.
कजरी गीतों में वर्षा, विरह, प्रेम और प्रकृति का सौंदर्य गाया जाता है. इस दिन कजरी लोकगीत गाने, झूला झूलने और समूह में उत्सव मनाने की परंपरा है. लोक मान्यता में यह व्रत चंद्रमा और शुक्र से जुड़ा है, जो दांपत्य सुख, प्रेम और भावनात्मक संतुलन के कारक हैं. इस दिन का उपवास और पूजा इन ग्रहों की अशुभता को दूर करता है.
कजरी तीज का इतिहास
स्कंद पुराण और शिव महापुराण में तीज व्रत की कथा आती है, जिसमें माता पार्वती ने 108 जन्मों तक भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया था. उनका तप इसी तिथि को पूर्ण हुआ और शिव-पार्वती का पुनर्मिलन हुआ. इसी घटना की स्मृति में कजरी तीज का पर्व मनाया जाता है. कजरी शब्द कजरी गीतों से जुड़ा है, जो इस समय महिलाएं झूले पर बैठकर गाती हैं. तीज के दिन उनका विवाह संपन्न हुआ, इसलिए इसे तिथि को श्रृंगार तृतीया के नाम से भी जाना जाता है.
स्कंद पुराण और शिव महापुराण में तीज व्रत की कथा आती है, जिसमें माता पार्वती ने 108 जन्मों तक भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया था. उनका तप इसी तिथि को पूर्ण हुआ और शिव-पार्वती का पुनर्मिलन हुआ. इसी घटना की स्मृति में कजरी तीज का पर्व मनाया जाता है. कजरी शब्द कजरी गीतों से जुड़ा है, जो इस समय महिलाएं झूले पर बैठकर गाती हैं. तीज के दिन उनका विवाह संपन्न हुआ, इसलिए इसे तिथि को श्रृंगार तृतीया के नाम से भी जाना जाता है.
कजरी तीज की रिवाज और परंपराएं
– कजरी तीज के दिन महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं और रात में कथा सुनकर व्रत तोड़ती हैं.
– कजरी तीज के दिन झूले सजाए जाते हैं और कजरी गीत गाए जाते हैं.
– कजरी तीज के दिन घरों में खासतौर पर गेहूं, चना, मूंग और बाजरे से बनी डिश सातू का सेवन और भोग चढ़ाया जाता है.
– कजरी तीज के दिन विशेष रूप से मेहंदी, हरी चूड़ियां और पारंपरिक पोशाक पहनने का रिवाज है.
– कजरी तीज के दिन महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं और रात में कथा सुनकर व्रत तोड़ती हैं.
– कजरी तीज के दिन झूले सजाए जाते हैं और कजरी गीत गाए जाते हैं.
– कजरी तीज के दिन घरों में खासतौर पर गेहूं, चना, मूंग और बाजरे से बनी डिश सातू का सेवन और भोग चढ़ाया जाता है.
– कजरी तीज के दिन विशेष रूप से मेहंदी, हरी चूड़ियां और पारंपरिक पोशाक पहनने का रिवाज है.