अबतक इंडिया न्यूज 1 अक्टूबर जयपुर. कांग्रेस में संगठनात्मक बदलाव की बयार तेज होने लग गई है. राजस्थान के पड़ोसी राज्य हरियाणा में कांग्रेस ने बड़ा उलटफेर करते हुए प्रदेश अध्यक्ष के पद पर राव नरेंद्र सिंह बिठा दिया है. पड़ोसी राज्य में हुई इस उठापटक के बाद अब राजस्थान में भी इसको लेकर सुगबुगाहट तेज हो गई है. राजस्थान में भी संगठन में बदलाव के कयास लगाए जाने लगे हैं. यह दीगर बात है कि पार्टी राजस्थान को बिहार चुनाव से पहले छेड़ती है या बाद में. लेकिन जानकार बताते हैं कि इस पर मंथन हो रहा है. इसकी बड़ी वजह यह भी है कि राजस्थान में कांग्रेस अभी से विधानसभा चुनाव की तैयारियों के लिए अलर्ट होना चाहती है.
अगर राजस्थान कांग्रेस संगठन में शीर्ष स्तर पर बदलाव होता है तो फिर नया चेहरा कौन होगा? इस पर सबकी निगाहें टिकी है. जाहिर तौर कांग्रेस की इस सियासी जंग में इसके लिए सबसे पहला नाम पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट का आता है. पायलट लंबे समय तक राजस्थान कांग्रेस की कमान संभाल चुके हैं. साल 2020 में सचिन पायलट अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत का बिगुल बजाकर अपने गुट के साथ मानेसर जा टिके थे. उस समय पायलट प्रदेश अध्यक्ष होने के साथ ही डिप्टी सीएम भी थे. पायलट और गहलोत के बीच लंबे समय से वर्चस्व की सियासी जंग चल रही थी.
मानेसर घटनाक्रम के बाद बदली थी कांग्रेस संगठन की सियासी तस्वीर
मानेसर घटनाक्रम के बाद कांग्रेस में जो कुछ हुआ वो सबने देखा. आखिरकार इस मामले में पार्टी ने सख्त कदम उठाते हुए पायलट को प्रदेश अध्यक्ष और डिप्टी सीएम दोनों पदों से हटा दिया गया था. पार्टी ने उनके स्थान पर सूबे में पार्टी की कमान जाट समुदाय से आने वाले नेता गोविंद सिंह डोटासरा को दे दी थी. लेकिन इससे पहले संगठन की प्रदेश, जिला और ब्लॉक सभी कार्यकारिणियां भंग कर दी गई थी. डोटासरा लंबे समय तक अकेले ही संगठन पदाधिकारी के तौर पर काम करते रहे थे. हालांकि लंबी राजनीतिक रस्साकसी के बाद गहलोत और पायलट में पूरी तरह तो नहीं लेकिन काफी हद तक सब सामान्य हो गया.
मानेसर घटनाक्रम के बाद कांग्रेस में जो कुछ हुआ वो सबने देखा. आखिरकार इस मामले में पार्टी ने सख्त कदम उठाते हुए पायलट को प्रदेश अध्यक्ष और डिप्टी सीएम दोनों पदों से हटा दिया गया था. पार्टी ने उनके स्थान पर सूबे में पार्टी की कमान जाट समुदाय से आने वाले नेता गोविंद सिंह डोटासरा को दे दी थी. लेकिन इससे पहले संगठन की प्रदेश, जिला और ब्लॉक सभी कार्यकारिणियां भंग कर दी गई थी. डोटासरा लंबे समय तक अकेले ही संगठन पदाधिकारी के तौर पर काम करते रहे थे. हालांकि लंबी राजनीतिक रस्साकसी के बाद गहलोत और पायलट में पूरी तरह तो नहीं लेकिन काफी हद तक सब सामान्य हो गया.
पायलट और गहलोत के बीच पुराने जख्म अब भरते हुए दिखाई दे रहे हैं
डोटासरा को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बने पांच साल से ज्यादा का समय हो गया है. लिहाजा अब बदलाव की सुगबुगाहट तेज हो रही है. इसके पीछे कई कारण गिनाए जा रहे हैं. डोटासरा के लंबे समय तक अध्यक्ष रहने के कारण अंदरखाने तनाव की चर्चाएं भी गाहे-बगाहे आती रहती है. इसकी बानगी हाल ही में बाड़मेर में पूर्व विधायक मेवाराम जैन की वापसी के समय भी देखने को मिली थी. वहीं पायलट और गहलोत के बीच समय के साथ पुराने जख्म अब भरते हुए दिखाई दे रहे हैं.
डोटासरा को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बने पांच साल से ज्यादा का समय हो गया है. लिहाजा अब बदलाव की सुगबुगाहट तेज हो रही है. इसके पीछे कई कारण गिनाए जा रहे हैं. डोटासरा के लंबे समय तक अध्यक्ष रहने के कारण अंदरखाने तनाव की चर्चाएं भी गाहे-बगाहे आती रहती है. इसकी बानगी हाल ही में बाड़मेर में पूर्व विधायक मेवाराम जैन की वापसी के समय भी देखने को मिली थी. वहीं पायलट और गहलोत के बीच समय के साथ पुराने जख्म अब भरते हुए दिखाई दे रहे हैं.
पायलट को कांग्रेस में ‘क्राउड पुलर’ लीडर माना जाता है
हालांकि पायलट पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव होने के साथ ही छत्तीसगढ़ के प्रभारी भी हैं. लेकिन उनकी बीते काफी समय से राजस्थान में सक्रियता जबर्दस्त बढ़ी हुई है. पायलट खेमा भी चाहता है कि आगामी विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी की कमान उनको सौंपी जाए. पायलट खुद भी बेहद सधे हुए कदमों और रणनीति के साथ आगे बढ़ रहे हैं. पायलट को कांग्रेस में ‘क्राउड पुलर’ लीडर माना जाता है. वे युवाओं में काफी पॉपुलर हैं. हाल ही में पायलट ने अपने जन्मदिन पर अपनी ‘पॉलिटिक्ल पावर’ दिखाई थी. पटना में आयोजित CWC की बैठक में भी उनकी भूमिका नजर आई थी.
पायलट की स्ट्रैटेजी साफ है कि संगठन को मजबूत कर वोटर कनेक्ट बढ़ाना
उनकी रणनीति ‘बॉटम-अप अप्रोच’ पर आधारित है. पायलट की ताकत उनकी सादगी और पहुंच में है. वे गांव-गांव घूमते हैं. किसानों के साथ बैठकर बात करते हैं. उनकी रणनीति में ‘इन्क्लूसिव पॉलिटिक्स’ झलकती है. पायलट की स्ट्रैटेजी साफ है कि संगठन को मजबूत कर वोटर कनेक्ट बढ़ाना. यह अलग बात है कि गहलोत समर्थकों का विरोध और आलाकमान का ‘एक व्यक्ति, एक पद’ का फॉर्मूला उनके रास्ते में रोड़ा बन सकता है. राजनीति के जानकारों के अनुसार फिलहाल पार्टी में पायलट के अलावा ऐसा कोई नाम सामने नहीं आ रहा है जिस पर चर्चा हो रही है. बाकी राजनीति सरप्राइजिंग फैसलों के लिए जानी जाती है. होने को कुछ भी हो सकता है. जैसा बीजेपी में विधानसभा चुनाव के बाद सीएम चुनने के दौरान हुआ था.
उनकी रणनीति ‘बॉटम-अप अप्रोच’ पर आधारित है. पायलट की ताकत उनकी सादगी और पहुंच में है. वे गांव-गांव घूमते हैं. किसानों के साथ बैठकर बात करते हैं. उनकी रणनीति में ‘इन्क्लूसिव पॉलिटिक्स’ झलकती है. पायलट की स्ट्रैटेजी साफ है कि संगठन को मजबूत कर वोटर कनेक्ट बढ़ाना. यह अलग बात है कि गहलोत समर्थकों का विरोध और आलाकमान का ‘एक व्यक्ति, एक पद’ का फॉर्मूला उनके रास्ते में रोड़ा बन सकता है. राजनीति के जानकारों के अनुसार फिलहाल पार्टी में पायलट के अलावा ऐसा कोई नाम सामने नहीं आ रहा है जिस पर चर्चा हो रही है. बाकी राजनीति सरप्राइजिंग फैसलों के लिए जानी जाती है. होने को कुछ भी हो सकता है. जैसा बीजेपी में विधानसभा चुनाव के बाद सीएम चुनने के दौरान हुआ था.