अबतक इंडिया न्यूज 11 अक्टूबर । राजस्थान में 9 अक्टूबर से लागू हुए राजस्थान विधि विरुद्ध संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2025 को लेकर प्रदेश के 20 सामाजिक, धार्मिक और नागरिक संगठनों ने कड़ा विरोध जताया है. संगठनों ने इसे पूर्ण रूप से अलोकतांत्रिक और सांप्रदायिक कानून बताते हुए कहा है कि यह संविधान की भावना के खिलाफ है और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन करता है.
जयपुर क्रिस्चियन फेलोशिप के जनरल सेक्रेट्री जस्टिन बोनिफेस ने कहा कि इस कानून का असली उद्देश्य केवल एक धर्म विशेष को सर्वोच्च सिद्ध करना और अन्य धर्मों को दोयम दर्जे पर रखना है. जारी बयान में आरोप लगाया गया है कि संघ परिवार की घर वापसी जैसी विचारधारा को इस अध्यादेश की धारा 3(1) में शामिल किया गया है, जिससे स्पष्ट होता है कि हिन्दू धर्म में परिवर्तन कानूनी दायरे से बाहर रखा गया है.
संविधान का अनुच्छेद 25 हर व्यक्ति को अपने धर्म की पूजा, उपासना, प्रचार और किसी भी धर्म को अपनाने की स्वतंत्रता देता है, पर यह नया अध्यादेश उन अधिकारों का उल्लंघन करता है. इसके साथ ही अनुच्छेद 14, 17, 19 और 21 के भी हनन का आरोप लगाया.
”कानून को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जाएगी”
पीयूसीएल की नेशनल प्रेसिडेंट और मानवाधिकार कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव ने कहा कि राजस्थान के इस नए कानून को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जाएगी. संगठनों का कहना है कि देश के 11 में से 7 राज्यों के धर्म परिवर्तन कानून पहले ही सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती के दायरे में हैं, और अब राजस्थान का कानून भी उसी मंच पर ले जाया जाएगा. दिवाली के बाद पूरे प्रदेश में नागरिक समाज, धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों और विभिन्न धर्मों के संगठनों के साथ मिलकर बड़ा जन आंदोलन चलाया जाएगा.
धर्म परिवर्तन के मामलों की जांच सीआईडी को सौंपने की मांग की गई है, क्योंकि वर्तमान में जांच कथित रूप से पक्षपातपूर्ण ढंग से की जा रही है. अल्पसंख्यकों के उपासना अधिकारों की सुरक्षा के लिए मुख्यमंत्री स्तर पर संरक्षण नीति बनाए जाने की मांग रखी गई है.