अबतक इंडिया न्यूज 25 जुलाई । राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव में शुक्रवार को हुए दर्दनाक स्कूल हादसे ने राज्य की सरकारी शिक्षा व्यवस्था और प्रशासनिक लापरवाही की पोल खोलकर रख दी है. राजकीय विद्यालय की जर्जर छत गिरने से 7 मासूम बच्चों की मौत हो गई, जबकि 27 बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गए.
पहले भी गिर चुके थे पत्थर
स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, यह स्कूल कई सालों से जर्जर हालत में था. छत और दीवारों से पहले भी कई बार पत्थर और मलबा गिर चुका था, जिसके चलते गांववालों ने स्कूल प्रशासन, सरपंच और शिक्षा विभाग के अधिकारियों से बार-बार शिकायतें की थी. बावजूद इसके कोई कार्रवाई नहीं हुई.
मरम्मत के नाम पर उठा ली गई राशि
सामने आई जानकारी के अनुसार, साल 2023 में स्कूल ने डांग क्षेत्र विकास योजना के तहत 1.80 लाख रुपये की राशि मरम्मत के लिए उठाई थी लेकिन स्कूल की हालत देखकर साफ है कि उस राशि का सही उपयोग नहीं किया गया. यदि मरम्मत होती, तो शायद यह हादसा टल सकता था.
हादसे के वक्त टीचर बाहर नाश्ता कर रहे थे
घटना के वक्त स्कूल में सिर्फ एक शिक्षक मौजूद था, जो बच्चों के मुताबिक बाहर पोहा खा रहे थे. एक आठवीं कक्षा की छात्रा ने बताया कि छत से कंकड़ गिरने लगे थे, हम टीचर को बताने गए लेकिन उन्होंने डांटकर वापस भेज दिया. दो मिनट बाद ही छत गिर गई.
एक अन्य छात्रा ने बताया कि हम झाड़ू लगा रहे थे, जब बताया कि पत्थर गिर रहे हैं तो हमें ही डांटा गया. इसके बाद बिल्डिंग हिलने लगी और गिर पड़ी और उसमें मेरा भाई उसमें दब गया.
सवालों के घेरे में शिक्षा विभाग और स्थानीय प्रशासन
इस हादसे ने ना सिर्फ स्कूल प्रशासन की लापरवाही को उजागर किया है, बल्कि शिक्षा विभाग और पंचायत स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार और उदासीनता की भी पोल खोल दी है. अब तक किसी अधिकारी के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है.झालावाड़ और प्रतापगढ़ जैसे क्षेत्रों में जर्जर भवनों में चल रही पढ़ाई बच्चों की जान के साथ सीधा खिलवाड़ है. यह हादसा किसी प्राकृतिक आपदा का नहीं, प्रशासनिक अपराध का परिणाम है, जिसकी कीमत इन मासूमों ने अपनी जान देकर चुकाई. अब सवाल उठता है कि क्या अब भी सिस्टम जागेगा या फिर अगली त्रासदी का इंतजार करेगा?